Mera Bachpan
मेरा अपना.........बचपन कैसे भूल जाऊं बचपन की बहुत याद आती हैं बचपन की वो यादें। कितना मासूम, सुहाना था मेरा बचपन ।
अब बचपन नहीं बस यादें ही रहें गई हैं। काश कोई ऐसा दरवाज़ा होता या कोई ऐसी कोई चीज़ होती जिससे मैं उस पार वापस अपने बचपन में चलीं जाती। वक्त की रेस में हम सब कितनी आगे चले गए हैं। सब यार–दोस्त पीछे छूट गए हैं ।
बचपन की वो मीठी यादें जिन्हें हम आज भी याद करते हैं। वो अब एक सपना सा बन गया है।
बचपन में ना कोई गम था, कोई ज़िम्मेदारी नहीं थी,ना किसी बात की परेशानी थी,ना किसी बात का डर । शायद ही कोई ऐसा होगा जिसको बचपन याद ना आता हो। बचपन की मीठी यादें, बचपन की मीठी बातें कितनी याद आती हैं। जीवन का असली आनंद बचपन ही हैं।
दादी–बाबा, नानी–नाना की कहानियां। माता–पिता का प्यार दुलार, छोटे–बड़े भाई–बहनों से प्यारी भरी नोक–झोंक । बचपन के वो यार–दोस्त वो खेल खिलौने बहुत याद आते हैं।
उन दिनों त्योहारों का भी अपनी अलग रौनक थी। अब वो बात नहीं हैं त्योंहार कब आकर चले जाते हैं पता ही नहीं चलता।
बचपन में होली बहुत खेली हैं। एक दूसरे के घर जाकर रंग लगाना, एक दूसरे पर पानी डालकर भाग जाना आज भी याद आता हैं।
बचपन की बारिश.….. बचपन की बारिश का भी अपना एक अलग मज़ा था। बारिश में पेपर बोट⛵ बनना, बारिश में मस्ती करना भीगना फिर मम्मी की डांट खाना।
वो स्कूल के दिन भी बहुत याद आते हैं। स्कूल की बजती घंटी, स्कूल ड्रेस में मस्ती करते करते स्कूल जाना। स्कूल होमवर्क, वो टीचर्स के साथ बतियाना, मैथ टीचर से छुप जाना। वो टीचर्स की डांट–प्यार आज भी सब याद आता हैं।
फ्री पीरियड में खूब मस्ती करना। शोर मचा कर पूरे क्लास में हंगामा करना। दोस्तों के साथ टिफ़िन शेयर करना। स्कूल की कैंटीन के गर्म गर्म समोसे और छोले भटूरे मुझे आज भी बहुत याद आते हैं।
छुट्टी के टाइम स्कूल गेट पर खड़े बैर और इमली वाले अंकल जी। दुकानों पर खट्टी मीठी गोलियां भी मिलती थी। वो बेर, इमली ,खट्टी–मीठी गोलियां अब कहा कुछ मिलता है।
बचपन में पोस्म पा, खो-खो, छुपन- छुपाई और तेज दौड़ लगाने वाले खेल खेलते थे। रोज किसी ना किसी को परेशान करके भाग जानें में भी अपना एक अलग मज़ा था। पहले यही सब खेल थे। उसी में बहुत आनंद आता था। मुझे आज भी याद है, एक आवाज़ पर सब बाहर निकल कर आ जाते थे। आने का टाइम फिक्स था। घर पर जानें का कोई टाइम नहीं रहता था।
कितना मज़ा आता था।
गर्मियों की छुट्टियों का भी बहुत इंतज़ार रहता था। कभी मामा के घर, कभी मौसी के घर। कभी सबका एक साथ कहीं बाहर घूमने जाना।
मुझे आज भी याद हैं, उन दिनों लाइट भी बहुत जाती थी,और यूपी का हाल लाइट को लेकर बहुत ख़राब था। गुस्सा भी बहुत आता था, गर्मियों की छुट्टियां और लाइट गुल, पर वो गर्मियों की छुट्टियों में सबका एक साथ बैठ कर हँसी ठिठौली करना, तरह तरह के खेल खेलना, अंतराक्षी... उन गर्मियों का भी अलग मज़ा था क्योंकि हमारे टाइम में मोबाइल डिश टीवी ये सब नहीं हुआ करते थे। हां टीवी और छत पर लगा एंटीना वो हर घर में था। बस दो चैंनल आते थे.... डीडी नैशनल और मेट्रो । हर संडे रामानन सागर जी की रामायण, श्री कृष्णा या कभी कुछ अच्छा आता था और टीवी धोखा दे जाता था। तो हर घर की छत से एक आवाज आती थी........ "आया के नहीं" कभी टीवी को पीट पीट कर ठीक करना । कभी केबल कैच हो जाता था तो उस खुशी का भी अलग मज़ा था
इन गर्मियों की छुट्टियों के बाद हमारे यहां , नुमाईश लगती थीं।
अभी भी लगती हैं । सब बदल गया सब पीछे छूट गए, बस ये नुमाइश ही बचपन की एक ताज़ी यादों में से एक हैं।
मेरा बचपन बहुत ही आनंदमय रहा है जिसमें न कोई भय न कोई फिक्र थी। हमेशा अपनी मर्जी चलती थी। काश! मैं एक बार फिर से बच्चा बन जाती और अपना बचपन दोबारा जी पाती।
Really enjoyed reading it:-)
ReplyDelete👍 very nice
ReplyDeleteInteresting
ReplyDeleteMust r ead to become nostalgic
ReplyDeletereally enjoyed
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